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इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा प्रणाली में बदलाव की जरुरत

changes in education system
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आजकल हर जगह , हर गली में कोचिंग संस्थान की भरमार है | अगर आप सड़क चलते देखें तो हर पाँच   कदम पर आपको कोई न कोई बैनर मिल ही जाएगा जिसपर लिखा हो ‘ आई .आई .टी / मेंस में १००% सिलेक्शन के लिए प्रवेश लें ‘ | परन्तु क्या सही में अगर कोई इन संस्थानों में प्रवेश चाहता है तो कोचिंग आवश्यक है ?
परन्तु भाईयों , यह कड़वी सच्चाई है की आज के प्रतिस्पर्धा के युग में कोचिंग समाज की जरुरत बन गए हैं | आज माँ बाप अपने बच्चे को छठी सातवीं से ही कोचिंग में डाल देते हैं ताकि उनके बच्चे आई .आई .टी से पढ़े | परन्तु उन बच्चों का क्या जो गाँव में रहते है या जिनके के पास कोचिंग की मोटी रकम चुकाने के पैसे तक नहीं हैं |
सरकार एक तरफ मेडिकल प्रवेश परीक्षा ( ए आई पी एम टी , एम्स ) से प्रयास सीमा हटा दी है तो दूसरी तरफ जे .इ. इ  एडवांस की प्रयास सीमा सिर्फ दो ही रखी है | एडवांस से पहले मेंस में चयनित होना रहता है , जहाँ मेंस कोई तीन बार दे सकता है वहीं एडवांस सिर्फ दो बार ही दे सकता है | यह गलत है दोनों परीक्षा की सीमा बराबर होनी चाहिए | अगर कोई पहली बार किसी कारणवश  मेंस नहीं निकाल पाता है और दूसरी बार निकाल लेता है तो वह उसका एडवांस में दूसरा एटेम्पट माना जाता है भले ही वह पहली बार एडवांस दे ही न पाया हो | इसी वजह से बच्चे और अभिभावक कोई मुसीबत नहीं चाहते और अपने बच्चों को छोटी कक्षा से कोचिंग में भेजने को मजबूर हो जाते हैं |
कोचिंग की इसी बढ़ती आबादी पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने बारहवीं बोर्ड के अंक  जोड़ना भी अनिवार्य किया परन्तु इससे कोई परिवर्तन नहीं आया बल्कि कोचिंग और भी बढ़ गए |
यदि सरकार सही में कोचिंग की जरुरत कम करना चाहती है और गरीब और मेधावी बच्चों को प्रवेश दिलाना चाहती है तो आई .आई .टी में भी कम से कम तीन प्रयास देने चाहिए |

इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा प्रणाली में बदलाव की जरुरत


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आजकल हर जगह , हर गली में कोचिंग संस्थान की भरमार है | अगर आप सड़क चलते देखें तो हर पाँच  कदम पर आपको कोई न कोई बैनर मिल ही जाएगा जिसपर लिखा हो ‘ आई .आई .टी / मेंस में 100% सिलेक्शन के लिए प्रवेश लें ‘ | परन्तु क्या सही में अगर कोई इन संस्थानों में प्रवेश चाहता है तो कोचिंग आवश्यक है ?

परन्तु भाईयों , यह कड़वी सच्चाई है की आज के प्रतिस्पर्धा के युग में कोचिंग समाज की जरुरत बन गए हैं | आज माँ बाप अपने बच्चे को छठी सातवीं से ही कोचिंग में डाल देते हैं ताकि उनके बच्चे आई .आई .टी से पढ़े | परन्तु उन बच्चों का क्या जो गाँव में रहते है या जिनके के पास कोचिंग की मोटी रकम चुकाने के पैसे तक नहीं हैं |

सरकार एक तरफ मेडिकल प्रवेश परीक्षा ( ए आई पी एम टी , एम्स ) से प्रयास सीमा हटा दी है तो दूसरी तरफ जे .इ. इ  एडवांस की प्रयास सीमा सिर्फ दो ही रखी है | एडवांस से पहले मेंस में चयनित होना रहता है , जहाँ मेंस कोई तीन बार दे सकता है वहीं एडवांस सिर्फ दो बार ही दे सकता है | यह गलत है , दोनों परीक्षा की सीमा बराबर होनी चाहिए | अगर कोई पहली बार किसी कारणवश  मेंस नहीं निकाल पाता है और दूसरी बार निकाल लेता है तो वह उसका एडवांस में दूसरा एटेम्पट माना जाता है भले ही वह पहली बार एडवांस दे ही न पाया हो | इसी वजह से बच्चे और अभिभावक कोई मुसीबत नहीं चाहते और अपने बच्चों को छोटी कक्षा से कोचिंग में भेजने को मजबूर हो जाते हैं |कम प्रयास सीमा के कारण कई मेधावी बच्चे जो बारहवीं के बाद कोचिंग करते है , उनके पास सिर्फ एक ही प्रयास रहता है | इस ” करो या मरो ” स्थिति के कारण  से उनपर अत्यधिक तनाव रहता है जिस वजह से वह अपनी पूरी कुशलता से परीक्षा नहीं दे पाते |

इसी संदर्भ में सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार जी ने  पिछले छह साल से इसकी कवायद की , वह  2010 तथा 2012  में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिले तथा पूर्व शिक्षा मंत्री  से भी मिले पर कोई बदलाव नहीं आया | वह एच.आर.डी मंत्री स्मृति ईरानी जी से भी मिले परन्तु  परीक्षा प्रणाली में कोई बदलाव नहीं आया |

link request-made-to-union-hrd-ministry-to-increase-more-attempts-for-iit-aspirants-as-well-1392374292-1

download (1)कोचिंग की इसी बढ़ती आबादी पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने बारहवीं बोर्ड के अंक  जोड़ना भी अनिवार्य किया परन्तु इससे कोई परिवर्तन नहीं आया बल्कि कोचिंग और भी बढ़ गए | यदि सरकार सही में कोचिंग की जरुरत कम करना चाहती है और गरीब और मेधावी बच्चों को प्रवेश दिलाना चाहती है तो आई .आई .टी में भी कम से कम तीन प्रयास देने चाहिए |

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